राकेश टिकैत का ड्रमा क्या आखरी प्रयोग या और कुछ अभी बाकी 26 जनवरी को पूरा राष्ट्र शर्मिंदा था स्वतंत्र भारत के इतिहास में अभी तक किसी भी राष्ट्रीय पर्व पर कभी भी आंदोलन या उग्र विरोध नहीं हुआ क्योंकि सत्ता में जो थे उन्हें राष्ट्र से कोई मतलब नहीं था विपक्ष में जो थे वो भी विरोध और आंदोलन करते थे परन्तु हमेशा जनता के भावनाओं का ख्याल रखा जाता था। परन्तु एक कहावत है बुरी आदत जल्दी जाती नहीं। जो अभी तक सत्ता में थे उनको लगता है जो विशेष समुदाय जो इनके समर्थक है वही जानता है जो इन्होंने एक प्रोपेगेंडा फैला रखा था उसी के हिसाब से जनता सोचती है । परन्तु जनता इन्हे बार बार आयीना दिखा रही है। 26 जनवरी के शर्मसार कर देने वाली घटना के उपरान्त राकेश टिकैत की रूदाली के कई मायने है पहला है आंदोलन को लंबे समय तक खिचना ताकी सरकार का ध्यान आंतरिक व्यवस्था को दुरुस्त करने में लगा रहे और जो अंतर्राष्ट्रीय घटनएं जैसे नेपाल में अस्थिर राजनैतिक हालत,म्यामार में सैनिक विद्रोह , ताईईवान के सविधनिक फेरबदल , गलवान वैली की स्थिति ,में चीन को बढ़त मील सके और भारत सरकार अंदर ही उलझी रह सके । इसी हेतु चीन के फ
राजनीत का तात्पर्य राज करने की नीति से है अर्थात एक ऐसी व्यस्था जिससे सामाजिक जीवन सुचारू रूप से संचालित हो सके। परन्तु जैसा के हर व्यस्था या अस्तित्व का एक परक्षाइं होती है जो इसके विकृत रूप होती है।विसा ही राजनीत में विकृत है।वो वास्तव में राजनीत ना होकर स्वें का हीत साधन मात्र है।इस विकृति राजनीति को मै कुकुरनिती का नामांकरण करता हूं।अतः राजनीति दो तरह की होती है। 1.राजनीति 2. कुकुरनिती