किसान आंदोलन में आतंकी संगठनों का प्रदर्शन
भारत वर्ष में आंदोलन कुछ समय से अराजकता फैलाने का साधन मात्र रह गया है इसका उदाहरण 26 जनवरी 2021 को देखा गया । 26 जनवरी को जब से हमने होश संभाला तब से अब तक कभी भी स्वतंत्रता के पर्व के दिन हमने देश की जनता चाहे वो कोई भी विचारधारा को समर्थन करने वाले हो इस दिन प्रदर्शन होते हुए नहीं देखा ।
अब तक के शाशन कल के भोग करने वाले लोगों को शायद अभी तक ये खुमार नहीं उतरा कि वे भगवान है,वे जो भी कहेंगे,करेंगे वो सही है।जिसको गलत कह दिया वो ग़लत जिसको सही कह दिया वो सही।
इसका उदाहरण है 26/01/2021 का नाम किसान आन्दोलन में वीभत्स प्रदर्शन और उस प्रदर्शन को कुछ तथाकथित किसान नेताओं के द्वारा सही ठहराना।
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अब तक होता ये था की कुछ तथाकथित बुधजिवी पत्रकारों के द्वारा कुछ घटनाओं को अपने हिसाब से सही या ग़लत सिद्ध कर देते थे। प्रतिवाद में कोई भी उत्तर नहीं मिलता था इस वजह से लोगों को अपने आपको भगवान या सुपर पॉवर होने का भ्रम हो गया था।
चूंकि अब सोशल मीडिया या प्रतियोगी मीडिया के द्वारा उसका जवाब मिलने लगा है और उन्ही के भाषा में तो इन तथाकित बुधजिवी वर्ग और सुपर पॉवर में बौखलाहट नामक मानसिक बीमारी घर कर गई है। इसी का परिणाम स्वरूप कुछ आंदोलन जैसे शाहीन बाग या किसान आंदोलन के रूप में दिख रहा है।
ये किसान आंदोलन उन स्वघोषित बुधजिवी वर्ग के निराशा हतासा डर सब कुछ छीन जाने का ये किसान आंदोलन परिणाम है। ये आंदोलन ज्यादा दिन नहीं चलने वाले क्योंकि जन्हा से इनकी फंडिंग अती है उनकी शक्ति भी धीरे धीरे छीन रही है।
कौन इनको साथ दे रहा है और क्या है कारण
अभी तक सभी विपक्षी पार्टियों के जितने भी सत्ता सीन लोग है उनके समर्थक अधिकतर दिमाग़ से कमजोर और आक्रामक दिखने वाले लोग जो आक्रमकता के आलावा उनका कोई गुण नहीं है वहीं समर्थक थे।
वजह ये था की ये लोग अपने आका के ख़िलाफ़ कभी नहीं जा सकते है और अपने आका के हर हुक्म को बिना सोचे समझे पूरा करते है।
इसमें सत्ता सीन अका को डर नहीं रहता विरोध का अपने ही लोगों के द्वरा और उनका मानना है की इसके द्वरा ये अनन्त कल तक शासन कर सकते थे।
इसका उदाहरण है नेपाल में ओली का शासन चीन के द्वारा , पाकिस्तान में इमरान, भारत में राहुल गांधी का समर्थन। चीन का नीति रही है उधार दे कर गुलाम बनाना और अपनी कठपुतली सरकार जो बुद्धि हिन अराजक हो को शासन देना
मगर बुद्धिहीन गुलाम संख्या में चाहे कितने भी हो बहादुर नहीं होते शेर एक बच्चे को लेकर भी आराम से सोता है और गाधहा दस बच्चों के साथ भी डर के साथ जागता रहता है।
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यही गलती विपक्षी पार्टी के लोगों ने भी किया और चीन भी कर रहा है । बुद्धिमान व्यक्ति संख्या में चाहें कितना भी कम क्यों ना हो उसका विरोध क्रांती लाती है उसके समर्थक दिल से जुड़े होते है। गुलाम कभी भी परिवर्तन नहीं ला सकता और बुद्धिमान बीना अराजक व्यवहार करे भी क्रांति ला सकता है।
किसान आंदोलन किसानों का आंदोलन नहीं है बल्की असामाजिक हारे निराश लोगों का समूह है जो एक ग़लत प्रयास कर रहा है अपने को शक्तिशाली साबित करने को और वर्तमान केंद्र सरकार से सौदेबाजी के लिए मजबूर करने के लिए ।और इन्होंने ऐसा समय भी चुना है जब चीन के द्वारा गरमा गर्मी हो रही है सीमा पर।
ये तथ्य साबित कर रहे है की ये किसान आंदोलन पाकिस्तान समर्थित और चीन द्वरा फंड किया गया है।
इसका कारण है चीन को भारत द्वारा कूटनीतिक, सैन्य रूप से कमजोर करना इसके उदाहरण है नेपाल पाकिस्तान और गलवान वैली।
इस तरह के आंदोलन के समर्थन करने वाले भी भागी है भारत को कमजोर करने में और इसका परिणाम मिल रहा है चुनावों में हर जगह भारतीय जनता पार्टी ही जीत रही है। और जब तक सही नीति और नीयत से विरोध नहीं होगा तब तक भारतीय जनता पार्टी ही जीतती रहेगी।
विपक्ष को सलह है की अपने समर्थकों को गुलाम न बनाकर जागरूक , बुद्धिमान और सबल बनाएं तभी एक शक्तिशाली विपक्ष का निर्माण होगा और सही लोकतंत्र की स्थापना होगी। इस तरह से किसान आंदोलन के रूप में अराजकता फैलाने से मुठ्ठी भर लोगों का ही समर्थन प्राप्त होगा और फंडिंग जाया जाएगी।
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